हिंदी कहानियां - भाग 128
किस्सा बूढ़े का जिसके साथ एक खच्चर था
किस्सा बूढ़े का जिसके साथ एक खच्चर था तीसरे बूढ़े ने कहना शुरू किया : 'हे दैत्य सम्राट, यह खच्चर मेरी पत्नी है। मैं व्यापारी था। एक बार मैं व्यापार के लिए परदेश गया। जब मैं एक वर्ष बाद घर लौटकर आया तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुलाम के पास बैठी हास-विलास और प्रेमालाप कर रही है। यह देखकर मुझे अत्यंत आश्चर्य और क्रोध हुआ और मैंने चाहा कि उन दोनों को दंड दूँ। तभी मेरी पत्नी एक पात्र में जल ले आई और उस पर एक मंत्र फूँक कर उसने मुझ पर अभिमंत्रित जल छिड़क दिया जिससे मैं कुत्ता बन गया। पत्नी ने मुझे घर से भगा दिया और फिर अपने हास-विलास में लग गई। 'मैं इधर-उधर घूमता रहा फिर भूख से व्याकुल होकर एक कसाई की दुकान पर पहुँचा और उसकी फेंकी हुई हड्डियाँ उठाकर खाने लगा। कुछ दिन तक मैं ऐसा ही करता रहा। फिर एक दिन कसाई के साथ उसके घर जा पहुँचा। कसाई की पुत्री मुझे देखकर अंदर चली गई और बहुत देर तक बाहर नहीं निकली। कसाई ने कहा, तू अंदर क्या कर रही है, बाहर क्यों नहीं आती? लड़की बोली, मैं अपरिचित पुरुष के सामने कैसे जाऊँ? कसाई ने इधर-उधर देखकर कहा कि यहाँ तो कोई अपरिचित पुरुष नहीं दिखाई देता, तू किस पुरुष की बात कर रही है? 'लड़की ने कहा, यह कुत्ता जो तुम्हारे साथ घर में आया है तुम्हें इसकी कहानी मालूम नहीं है। यह आदमी है। इसकी पत्नी जादू करने में पारंगत है। उसी ने मंत्र शक्ति से इसे कुत्ता बना दिया है। अगर तुम्हें इस बात पर विश्वास न हो मैं तुरंत ही इसे मनुष्य बना कर दिखा सकती हूँ। कसाई बोला, भगवान के लिए सो ही कर। तू इसे मनुष्य बना दे ताकि यह लोक-परलोक दोनों का धर्म संचित करे। 'यह सुन कर वह लड़की एक पात्र में जल लेकर अंदर से आई और जल को अभिमंत्रित करके मुझ पर छिड़का और बोली, तू इस देह को छोड़ दे और अपने पूर्व रूप में आ जा। उसके इतना कहते ही मैं दुबारा मनुष्य के रूप में आ गया और लड़की फिर परदे के अंदर चली गई। मैंने उसके उपकार से अभिभूl होकर कहा, हे भाग्यवती, तूने मेरा जो उपकार किया है उससे तुझे लोक-परलोक का सतत सुख प्राप्त हो। अब मैं चाहता हूँ कि मेरी पत्नी को भी कुछ ऐसा ही दंड मिले। 'यह सुनकर लड़की ने अपने पिता को अंदर बुलाया और उसके हाथ थोड़ा अभिमंत्रित जल बाहर भिजवाकर बोली, तू इस जल को अपनी पत्नी पर छिड़क देना। फिर तू उसे जो भी देह देना चाहे उस पशु का नाम लेकर स्त्री से कहना कि तू यह हो जा। वह उसी पशु की देह धारण कर लेगी। मैं उस जल को अपने घर ले गया। उस समय मेरी पत्नी सो रही थी। इससे मुझे काम करने का अच्छा मौका मिल गया। मैंने अभिमंत्रित जल के कई छींटे उसके मुँह पर मारे और कहा, तू स्त्री की देह छोड़कर खच्चर बन जा। वह खच्चर बन गई और तब से मैं इसी रूप में अपने साथ लिए घूमता हूँ।' शहरजाद ने कहा - बादशाह सलामत, जब तीसरा वृद्ध अपनी कहानी कह चुका तो दैत्य को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने खच्चर से पूछा कि क्या यह बात सच है जो यह बूढ़ा कहता है? खच्चर ने सिर हिला कर संकेत दिया कि बात सच्ची है। तत्पश्चात दैत्य ने व्यापारी के अपराध का बचा हुआ तिहाई भाग भी क्षमा कर दिया और उसे बंधनमुक्त कर दिया। उसने व्यापारी से कहा, तुम्हारी जान आज इन्हीं तीन वृद्ध जनों के कारण बची है। यदि ये लोग तुम्हारी सहायता न करते तो तुम आज मारे ही गए थे। अब तुम इन तीनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करो। यह कहने के बाद दैत्य अंतर्ध्यान हो गया। व्यापारी उन तीनों के चरणों में गिर पड़ा। वे लोग उसे आशीर्वाद देकर अपनी-अपनी राह चले गए और व्यापारी भी घर लौट गया और हँसी-खुशी अपने प्रियजनों के साथ रहकर उसने पूरी आयु भोगी। शहरजाद ने इतना कहने के बाद कहा, 'मैंने जो यह कहानी कही है इससे भी अच्छी एक कहानी जानती हूँ जो एक मछुवारे की है।' बादशाह ने इस पर कुछ नहीं कहा लेकिन दुनियाजाद बोली, 'बहन, अभी तो कुछ रात बाकी है। तुम मछुवारे की कहानी भी शुरू कर दो। मुझे आशा है कि बादशाह सलामत उस कहानी को सुनकर भी प्रसन्न होंगे।' शहरयार ने वह कहानी सुनने की स्वीकृति भी दे दी। शहरजाद ने मछुवारे की कहानी इस प्रकार आरंभ की।